“मैं चल पड़ी नई रहा पर ,उम्मीद का दामन थामे! किरणों की पालकी में बैठ कर , चली अपनी दुनिया सजाने, किताबे बहुत पढ़ी हमने, खूब अटकले लगाई, पर खुद पर जब किया भरोसा , जब कुंजी हाथ में आयी, लक्ष्मीबाई से साहस माँगा, चाणक्य से नीति पाई, दृढ़ता की बातें में लिए, निश्चय की ज्योति जलाई !!”